“संघर्ष से सफलता तक: जेएनयू में नीतीश्वर महाविद्यालय के छात्रों की लगातार कामयाबी”
“कड़ी मेहनत और सच्चा इरादा ही असली सफलता की कुंजी है।” इस कहावत को नीतीश्वर सिंह महाविद्यालय, बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ्फरपुर के उर्दू विभाग के छात्रों ने बार-बार सच साबित किया है।
2023 का साल विभाग के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया, जब मोहम्मद आफ़ताब ने जेएनयू की परीक्षा क्वालीफाई करके एम.ए. उर्दू में दाख़िला लिया। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता थी, बल्कि विभाग के लिए एक नई उम्मीद और प्रेरणा का प्रारंभिक बिंदु भी बनी। इसके अगले ही साल 2024 में सफलता का दायरा और बड़ा हुआ। इस वर्ष संजीदा खातून, राबिया खातून, असलम रहमानी और रोकैया खातून – इन चारों छात्रों ने जेएनयू एम.ए.उर्दू के लिए इंट्रेंस टेस्ट क्वालीफाई करके नीतीश्वर महाविद्यालय का मान बढ़ाया। उनकी उपलब्धि ने साबित किया कि अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती।
इस वर्ष 2025 में को नीतीश्वर महाविद्यालय के कुल 8 छात्रों ने देश की शीर्ष विश्वविद्यालयों के लिए क्वालिफ़ाई किया है, जिनमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) शामिल हैं। पाँच छात्र, असलम रहमानी, रोकैया खातून, राबिया खातून, तसनीम फातमा और आयशा ने जेएनयू में अपनी जगह बनाई। साथ ही, गुलाम अली और फरीना परवीन ने दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) एम.ए. उर्दू में, सफ़दर इमाम ने बी.ए. उर्दू में जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में दाख़िला लेकर सफलता की इस श्रृंखला को और भी गौरवशाली बना दिया।
खास बात यह रही कि असलम रहमानी, रोकैया खातून और राबिया खातून पिछले वर्ष 2024 में भी जेएनयू में एम ए उर्दू के लिए चयनित हुए थे, लेकिन बिहार विश्वविद्यालय की परीक्षा, सत्र और परीक्षाफल में देरी की वजह से ये तीनों छात्र दाख़िला नहीं ले पाए। ये वक्त छात्रों के लिए बड़ा ही कठिन था जिसमें बहुतों हार मान लेते हैं पर उन्होंने हार नहीं मानी और तीनों ने ठान लिया की अगले वर्ष पुनः प्रवेश परीक्षा देते हुए सफलता पाना है. 2025 में दूसरे छात्रों के साथ साथ इन तीनों छात्रों ने पुनः प्रवेश परीक्षा दी और फिर से जेएनयू के लिए सफलता पाई। यह उनकी धैर्यशीलता और संकल्प का ज्वलंत उदाहरण है।
इस निरंतर सफलता के पीछे एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी और नैतिक दायित्व समझते हुए स्वयं संकल्प लिया कि कुछ ऐसा किया जाए कि “मुज़फ्फरपुर जैसे शहर से भी हमारे छात्र हिंदुस्तान के बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में दाख़िला ले पाएँ, और इसके लिए चाहे जितनी मेहनत क्यों न करनी पड़े, मैं करूँगा।” इस मजबूत संकल्प और अथक परिश्रम का नाम है प्रोफेसर कामरान गनी सबा। कामरान साहब बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के नीतीश्वर सिंह महाविद्यालय के उर्दू विभाग में प्रोफेसर हैं.
सोचने वाली बात है कि आखिर किसी एक कॉलेज के एक ही विभाग से इतनी शानदार सफलता कैसे आई? असल में, किसी भी सफलता के पीछे एक सोच होती है, उस सोच को सफल बनाने के लिए जज्बा और फिर दिन रात की मेहनत होती है. पढ़ाई केवल किताबों तक सीमित नहीं रही। यहाँ छात्रों को यह विश्वास दिलाया गया कि सपने केवल देखने के लिए नहीं होते, उन्हें पूरा करने की ताक़त भी हममें है। उनके अंदर मेहनत को आदत बनाया गया, संघर्ष को हिम्मत, और हार को दोबारा कोशिश करने का मौका। यही वजह है कि यह मार्गदर्शन केवल शिक्षक का कर्तव्य नहीं रहा, बल्कि एक ऐसी रौशनी बना जिसने उनके जीवन से संदेह और निराशा के बादल हटाकर नई राह दिखा दी। आज जो सफलता दिखाई दे रही है, वह उसी रोशनी का फैलाव है, जिसने इन छात्रों को साधारण से असाधारण बना दिया। न केवल राह को रोशन किया, बल्कि अंधेरों को भी मिटा दिया।
जहाँ जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना किसी भी छात्र का सपना होता है, वहीं नीतीश्वर सिंह महाविद्यालय ने लगातार तीन वर्षों में – पहले 1, फिर 4 और उसके बाद 7 छात्रों का चयन कराकर यह सिद्ध कर दिया कि छोटे शहरों से भी बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं।
इन छात्रों की सफलता यह साबित करती है कि – “मेहनत और सही मार्गदर्शन से हर सपना हकीकत बन सकता है।” निश्चय ही नीतीश्वर महाविद्यालय की यह उपलब्धि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा-स्रोत बनेगी। हमें पूरा विश्वास है कि यहाँ से आगे भी और छात्र राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी चमक बिखेरेंगे। यह कामयाबी केवल उर्दू विभाग तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे बिहार विश्वविद्यालय और बिहार की शैक्षिक दुनिया के लिए गौरव का प्रतीक है।
अंत में, ‘’प्रोफेसर कामरान ग़नी सबा’’ साहब का समर्पण हर किसी के लिए प्रेरणा है। उन्होंने यह दिखा दिया कि अगर शिक्षक अपने छात्रों पर विश्वास करे, तो असंभव भी संभव हो जाता है। उनका मार्गदर्शन केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं, बल्कि हौसला, आत्मविश्वास और ज़िम्मेदारी की सीख भी देता है। वह इस बात के प्रतीक हैं कि छोटे शहरों से भी बड़ी उड़ान भरी जा सकती है। उनकी मेहनत और ईमानदारी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा यह संदेश देती रहेगी कि – “सपनों को पूरा करने के लिए सही सोच, सही दिशा और अनथक संघर्ष ही असली चाबी है” । वो कहते हैं न, कदम चूम लेती है आकर खुद-ब-खुद मंज़िल, अगर मुसाफ़िर हार न माने।
कामरान साहब सिर्फ़ एक उत्कृष्ट शिक्षक ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील इंसान के रूप में भी समाज के लिए निरंतर योगदान देते हैं। वे छात्रों के भविष्य को सँवारने के साथ-साथ मानवता की सेवा में भी सक्रिय रहते हैं और नियमित रक्तदान करके यह संदेश देते हैं कि असली शिक्षा वही है, जिसमें इंसानियत और सामाजिक ज़िम्मेदारी का समावेश हो।