जब हौसले ने पहिए को पंख बना दिया, (संजीव जी की प्रेरणात्मक और भावनात्मक यात्रा)
“ज़िन्दगी तब नहीं रुकती जब राह में कांटे हों,
ज़िन्दगी तब रुकती है जब हम चलना छोड़ देते हैं।”
हर दिन हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो ज़िन्दगी से शिकायत करते हैं – कोई अपने हालात से, कोई अपने शरीर से, तो कोई अपने नसीब से। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो न शिकायत करते हैं, न हार मानते हैं। वे अपनी कमज़ोरियों को अपनी सबसे बड़ी ताक़त बना लेते हैं।
संजीव जी ऐसे ही विलक्षण व्यक्तित्व का नाम है – एक ऐसा नाम जो इस बात का जीवित प्रमाण है कि “हौसले अगर बुलंद हों, तो पंखों की ज़रूरत नहीं होती।”
एक दिन जो सब कुछ बदल गया
करीब 24 साल पहले, एक दर्दनाक हादसे ने उनकी ज़िन्दगी को पलट कर रख दिया। इस दुर्घटना में उनके दोनों पैर कट गए, कमर से नीचे उनका शरीर हमेशा के लिए असहाय हो गया। वह उम्र जब सपने आकार लेते हैं, जब इंसान उड़ना चाहता है—संजीव जी को ज़िन्दगी ने जकड़ लिया व्हीलचेयर में।
पर यही वो मोड़ था, जहाँ से उनकी असल उड़ान शुरू हुई।
“जो लोग मुश्किलों से डरते हैं, वो इतिहास नहीं बनाते।
जो लोग मुश्किलों से टकराते हैं, वही मिसाल बन जाते हैं।”
संघर्ष से सेवा तक का सफ़र
संजीव जी ने ज़िन्दगी को चुनौती की तरह लिया। उन्होंने अपने हालात को अपनी पहचान नहीं बनने दिया। शिक्षा पूरी की, आत्मनिर्भरता सीखी और समाज में अपना स्थान बनाया। आज वे एक बैंक मैनेजर हैं, एक समाजसेवी हैं, और उससे भी बढ़कर – लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं।
वे रोज़ अपने काम से, अपने शब्दों से, अपने व्यवहार से यह सिखाते हैं कि कोई भी शारीरिक सीमा इंसान के सपनों को नहीं रोक सकती, अगर उसकी आत्मा आज़ाद हो।
कुछ और मिसालें, एक ही जज़्बा
संजीव जी की कहानी उन कई अद्वितीय लोगों की याद दिलाती है जिन्होंने अपने जीवन से यह साबित किया कि हौसले के आगे हर चुनौती छोटी होती है:
– अनुरिमा सिन्हा – ट्रेन हादसे में पैर गंवाया, फिर भी एवरेस्ट फतह किया।
– निक वुयिचिच – बिना हाथ-पैर के जन्मे, आज दुनिया के सबसे बड़े मोटिवेशनल स्पीकर्स में से एक हैं।
– उम्मुल खैर – 16 बार सर्जरी हुई, “bone fragile disorder” से जूझीं, पर UPSC पास किया।
– प्रांजल पाटिल – नेत्रहीन होते हुए भी भारत की पहली दृष्टिहीन महिला IAS अधिकारी बनीं।
– JNU के दिव्यांग छात्र – दोनों पैरों के बिना UPSC क्वालिफाई कर यह साबित किया कि “जो ठान लो, वो मुमकिन है।”
और इसी कतार में खड़े हैं संजीव जी, जिनकी आंखों में आज भी उतनी ही चमक है, जितनी कभी उनके पैरों में रफ्तार रही होगी।
संजीव जी की प्रेरणा: शब्दों से परे
उनका जीवन एक ऐसी किताब है, जिसका हर पन्ना हमें यही सिखाता है:
“शरीर भले ही थक जाए, पर आत्मा अगर थकी नहीं,
तो मंज़िल तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता।”
उनकी दिनचर्या, उनकी सेवा, और उनकी मुस्कुराहट उन तमाम लोगों के लिए जवाब है, जो अपनी छोटी-छोटी मुश्किलों को जिंदगी का अंत समझ बैठते हैं।
एक सच्चा नायक
संजीव जी ने साबित किया कि *”Real heroes don’t wear capes, they wear courage.”
वे सिर्फ बैंक मैनेजर नहीं हैं। वे सिर्फ समाजसेवी नहीं हैं। वे एक विचार हैं – कि ज़िन्दगी को हालात नहीं, हौसले दिशा देते हैं।
वे एक उम्मीद हैं उन लोगों के लिए, जिनके पास सबकुछ है, पर फिर भी वे आगे नहीं बढ़ पा रहे।
हमारा सलाम
हम संजीव जी के साहस, संघर्ष और सेवा को नमन करते हैं।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि **”असली उड़ान पंखों से नहीं, इरादों से भरी जाती है।”
हम कामना करते हैं कि वे यूँ ही प्रेरणा बनें रहें – एक चलती फिरती मिसाल कि ज़िन्दगी में चाहे जितनी भी रुकावटें हों, मन में विश्वास और दिल में हौसला हो तो हर नामुमकिन मुमकिन हो सकता है।
“संजीव कुमार जी के फेसबुक से उनके द्वारा साझा मार्मिक यात्रा”
मैं और मेरा व्हीलचेयर
आज से ठीक 24 साल पहले की बात है मेरे जिन्दगी में भी एक ऐसी घटना घटी जो मेरे जीवन को एकदम से बदल दिया, मैं कुछ पड़ेसान हुआ, थोड़ा घबराया, धैर्य खोने लगा की आखिर अब मेरा क्या होगा…?
मैं हमेशा यही सोचता रहा…!
सोचते सोचते मेरे जीवन में दस्तक हुआ मेरे व्हीलचेयर का जिसने मुझसे वादा किया कि परेशान मत हो मैं साथ दूंगा तुम्हे जीवन भर, जीवन के कठिन से कठिन मंजिल को पाने में मैं तेरा सहयोग करूंगा, मैं तुम्हारे दिनचर्या में शामिल होकर पग पग तेरा साथ निभाऊंगा, जब तुम रात को सोते रहोगे उस समय में भी मै तेरे एकदम पास रहूंगा पता नहीं तुम्हे कब मेरा जरूरत आ परे। मैं तुम्हारे हर सुख-दुख में साथ निभाने का वादा करता हूँ। समय के साथ मेरा भी स्वरूप बदला है पर स्वभाव नहीं, मैं भी अब थोड़ा मॉडर्न हो गया हूँ। पहले जब तुम मुझे अपने हाथों से चलाते थे तो महसूस होता था कि तुझे बहुत कष्ट होता है फिर मैं तुम्हारे खातिर मैं मॉडर्न बन गया ताकि अब तुम मेरा इस्तेमाल अंगुलियों से कर सको। मैं पुनः वादा करता हूँ कि मैं जीवन भर तुम्हारे साथ रहूंगा।
आज 24 साल बाद भी मैं महसूस करता हूँ कि सचमुच मेरा व्हीलचेयर ने मेरा बहुत साथ निभाया है। सच्चाई है कि जब से मुझे व्हीलचेयर का साथ मिला है मेरा जीवन मुझे बहुत आसान लगने लगा, न कोई कार्य और न कोई मंजिल मुझे मुश्किल लगा। सच में बहुत प्यारा है मेरा यह व्हीलचेयर जिसे मैं बहुत प्यार करता हूँ।
Thank You My Wheelchair
संजीव कुमार