बनी आदम “सादी शिराजी”

बनी आदम “सादी शिराजी”

एक ही काम के लिए, एक के प्रति प्यार और दूसरे के प्रति सिर्फ नफरत की भावना, ऐसा क्यों? क्या प्यार और नफरत का मयार सिर्फ धर्म, जाती, लिंग, रंग और सरहद ही है. क्या एक की रगों में रक्त और दूसरे की रगों में पानी दौर रहा है? क्या एक जगह इंसान और दूसरे जगह रोबोट मारे जा रहे हैं? नहीं, मारे सिर्फ इंसान ही जा रहे हैं, चाहे कहीं के भी मरे.

इंसान कहीं का भी मरे, बेचैनी होती है, घबराहट होती है, दुख होता है और गुस्सा भी. किसी के मौत पर, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, जश्न मनाया जा सकता है क्या? किसी के मौत पर अगर हम जश्न मनाते है तो हमें पुनः इस बात पर गौर करना चाहिए कि हम इंसान ही हैं न? इस नाजुक वक्त में पूरे विश्व को अपने अंदर देखने और गौर करने की जरूरत है के साथ साथ खुद से पूछने की जरूरत है कि, क्या हम इंसान हैं.

इसी बात को हम इस शेर पर रख कर देखें कि हम इंसान हैं या नहीं.

तेरहवीं सदी के विश्व प्रसिद्द कवि, विचारक, सूफी और दार्शनिक, ईरान के शिराज में पैदा हुए शेख सादी शिराजी, एक ऐसा नाम हैं जिनको शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो साहित्य से तालुक रखने के बावजूद उनको नहीं जानता हो, शायद नहीं. सादी साहब की प्रमुखता रचनाओं में गुलिस्तां (फूलों का बाग) और बोस्ता (फलों का बाग ) को विश्व साहित्य में अमूल्य स्थान प्राप्त है. आज जिस कॉप्लेट “बनी आदम” (आदम के औलाद या मानव जाति) की बात करने वाले है उसे संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रवेश द्वार पर उकेरा गया है जो पूरी दुनिया को मानवता का संदेश दे रहा है और इस बात पर भी विचार, मंथन और गौर करने को कह रहा है कि, क्या हम इंसान है? तो आइए हम सब इस पृथ्वी पर रहने वाले लोग, अपने आपको सादी शिराजी साहब के शेर “बनी आदम” पर खुद को रख कर फैसला करें कि, क्या हम वाकई में इंसान कहलाने लायक है?

शेर यूं है, गौर फरमाएं

1. बनी आदम अज़ाये यकदीगरंद,
के दर आफ़रीनश ज़े यक गोहरंद.

2. चो उज़्वी बे दर्द आवरद रोज़ेग़ार,
दिगर उज़्वहा रा नमानद करार.

3. तो कज़ मेहनत-ए दीगरां बी-ग़मी,
नशायद के नामत नहंद आदमी.

अब आइए हम सभी इस शेर के एक एक शब्द का मतलब जानते हैं, और फिर इसका मूल भाव,

1. बनी आदम अजाए-ए यकदीगरंद
के दर आफरीनश ज़े यक गोहरंद

بنی (Bani) बनी संतान/वंशज/औलाद
آدم (Adam) आदम आदम (प्रथम पुरुष), मानव
(Bani Aadam) बनी आदम /आदम के औलाद/मानव जाति
اعضای (A’zaye) अज़ाय अंग/भाग/पार्ट
یکدیگرند (Yekdigarand) एक-दूसरे के हैं
अजाए यकदीगरंद – एक दूसरे के अंग हैं.
که (Ke) के जो / क्योंकि
در (Dar) दर में
آفرینش (Afarinesh) सृष्टि / उत्पत्ति
के दर आफरीनश – जिसकी उत्पत्ति/रचना
ز (Ze) से
یک (Yek) एक
گوهرند (Goharand) तत्व / मूल
ज़े यक गोहरंद – एक ही तत्व से हुई है
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2. चु उज़्वी बे दर्द आवरद रोज़ेग़ार
दिगर उज़्वहा रा नमानद करार
چو(Cho) जब / जैसे
عضوی (Ozvi) कोई अंग
به (Be) को
درد (Dard) दर्द / पीड़ा
آورد (Aavared) लाए / दे
روزگار (Rozegar) समय / जीवन
دگر (Degar) अन्य / दूसरा
عضوها (Ozvha) अंग (बहुवचन)
را (Ra) को (वाचक चिह्न)
نماند (Namanad) नहीं रहता
قرار (Qarar) चैन / शांति

3. तो कज़ मेहनत-ए दीगरां बे-ग़मी
नशायद के नामत नहंद आदमी
تو (To) तुम
کز (Kaz / ke + az) जो / जिसको
محنت (Mehnat) कष्ट / पीड़ा
دیگران (Digaran) दूसरों
بی‌غمی (Bi-ghami) निःसंवेदनशीलता / दुख से मुक्त
نشاید (Nashayad) योग्य नहीं है
که (Ke) कि
نامت (Namat) तुम्हारा नाम
نهند (Nehend) रखा जाए
آدمی (Adami) इंसान / मनुष्य

 

यह शेर हमें याद दिलाता है और इसका मतलब यह है कि, “मनुष्य, एक-दूसरे से जुड़े हुए अंगों की तरह हैं, जो एक ही मूल तत्व से बने हैं; यदि एक अंग को पीड़ा होती है, तो बाकी अंगों को भी चैन नहीं रहता, बल्कि बेचैन रहता है। जो व्यक्ति दूसरों के दुख से दुखी, और खुशी से खुश नहीं होता है, वास्तव में वह इंसान कहलाने के योग्य नहीं है।”

मुख्य संदेश:
❝इंसानियत का असली मतलब, एक दूसरों के दुःख में सहभागी बनना। अगर कोई इंसान दूसरों की तकलीफ देखकर भी संवेदनशील नहीं है, तो वह वास्तव में इंसान कहलाने योग्य नहीं है❞

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